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दू॒रादिन्द्र॑मनय॒न्ना सु॒तेन॑ ति॒रो वै॑श॒न्तमति॒ पान्त॑मु॒ग्रम्। पाश॑द्युम्नस्य वाय॒तस्य॒ सोमा॑त्सु॒तादिन्द्रो॑ऽवृणीता॒ वसि॑ष्ठान् ॥२॥

English Transliteration

dūrād indram anayann ā sutena tiro vaiśantam ati pāntam ugram | pāśadyumnasya vāyatasya somāt sutād indro vṛṇītā vasiṣṭhān ||

Pad Path

दू॒रात्। इन्द्र॑म्। अ॒न॒य॒न्। आ। सु॒तेन॑। ति॒रः। वै॒श॒न्तम्। अति॑। पान्त॑म्। उ॒ग्रम्। पाश॑ऽद्युम्नस्य। वा॒य॒तस्य॑। सोमा॑त्। सु॒तात्। इन्द्रः॑। अ॒वृ॒णी॒त॒। वसि॑ष्ठान् ॥२॥

Rigveda » Mandal:7» Sukta:33» Mantra:2 | Ashtak:5» Adhyay:3» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:7» Anuvak:2» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वह राजा कैसे विद्वानों को स्वीकार करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (सुतेन) उत्पन्न हुए पदार्थ वा पुत्र से (वैशन्तम्) प्रवेश होते हुए जन के सम्बन्धी (पान्तम्) पालना करते हुए (उग्रम्) तेजस्वी (इन्द्रम्) परमैश्वर्यवान् को (दूरात्) दूर से (अनयन्) पहुँचाते और दारिद्र्य को (तिरः) तिरस्कार करते हैं उनसे (पाशद्युम्नस्य) जिसने धन यश पाया है उस (वायतस्य) विज्ञानवान् के (सुतात्) धर्म से उत्पन्न किये (सोमात्) ऐश्वर्य से (इन्द्रः) परमैश्वर्य राजा (वसिष्ठान्) अतीव विद्याओं में किया निवास जिन्होंने उन को (अति, आ, अवृणीत) अत्यन्त स्वीकार करे ॥२॥
Connotation: - हे राजन् आदि जनो ! जो दूर से अपने देश को ऐश्वर्य पहुँचाते और दारिद्र्य का विनाश कर लक्ष्मी को उत्पन्न करते हैं, उन उत्तम जनों की निरन्तर रक्षा कीजिये ॥२॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः स राजा कीदृशान् विदुषः स्वीकुर्यादित्याह ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! ये सुतेन वैशन्तं पान्तमुग्रमिन्द्रं दूरादनयन् दारिद्र्यं तिरो नयन्ति तैः पाशद्युम्नस्य वायतस्य सुतात्सोमादिन्द्रो वसिष्ठानत्यावृणीत ॥२॥

Word-Meaning: - (दूरात्) (इन्द्रम्) परमैश्वर्यम् (अनयन्) नयन्ति (आ) (सुतेन) निष्पन्नेन पुत्रेण वा (तिरः) तिरस्कारे (वैशन्तम्) वेशन्तस्य विशतो जनस्येमम् (अति) (पान्तम्) रक्षन्तम् (उग्रम्) तेजस्विनम् (पाशद्युम्नस्य) पाशात्प्राप्तं द्युम्नं यशो धनं येन तस्य (वायतस्य) विज्ञानवतः (सोमात्) ऐश्वर्यात् (सुतात्) धर्म्येण निष्पादितात् (इन्द्रः) परमैश्वर्यो राजा (अवृणीत) वृणुयात्। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (वसिष्ठान्) अतिशयेन विद्यासु कृतवासान् ॥२॥
Connotation: - राजादयो जनाः ! ये दूरादैश्वर्यं स्वदेशं प्रापयन्ति द्रारिद्र्यं विनाश्य श्रियं जनयन्ति तानुत्तमाञ्जनान्सर्वतो सततं रक्षेयुः ॥२॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - हे राजा इत्यादींनो ! जे दूर राहूनही आपल्या देशाला ऐश्वर्यसंपन्न करतात व दारिद्र्याचा नाश करून लक्ष्मी प्राप्त करतात त्या उत्तम लोकांचे निरंतर रक्षण करा. ॥ २ ॥